माँ का कर्ज

मांँ, अपने खून से सींचकर जिसने बेटे को बड़ा किया 
आज अकेली खड़ी है एक रास्ते पर 
सोच में डूबी कभी आगे कभी पीछे मुड़ मुड़ के  देखती है 
शायद है किसी का इंतजार 
काश!  कोई आए और उसे उसके घर ले जाए 
वो घर जिसमें वो कभी बहू बनकर आई थी 
पत्नी बन जिस घर को उसने संवारा 
पति ने कहा तू तो इस घर की रानी है 
आज उस रानी का राज छिन रहा है 
वो राज जहाँ उसने अपने बेटे को राजकुमार की तरह पाला
हर घड़ी उस पे वारी वारी जाती थी 
उसकी हर  ख़्वाहिश  पे  कुर्बान हो जाती थी 
आज उम्मीदों का वो आँगन  छूट रहा है 
कोई पुकारने वाला नहीं 
उस घर को नयी रानी मिल गई है 
और आज माँ रास्ते पर खड़ी है 
वो रास्ता वापस नहीं जाता उसके घर 
जाता है तो सिर्फ एक नए घर वृद्ध आश्रम की तरफ़ 
जहाँ अपने नहीं पर उसे अपना लेंगे 
जहाँ रहते हुए हर पल वो सोचेगी क्या खोया क्या पाया
माँ की ममता का कर्ज चुकाना मुश्किल होता है 
ऐसा सुना था पर इसके विपरीत पाया
जिस बेटे की आँख में एक आँसू देखकर तड़प उठती थी माँ
उसी बेटे ने माँ का दामन आँसुओं से भिगो डाला 
क्या यही है दस्तूर कैसे बदल जाते हैं रिश्ते 
कैसे खून सफ़ेद हो जाता है 
रूह नहीं कांपती उनकी सोचकर कि वक्त उनका भी बदलेगा
अंत उनका भी यही होगा 
आखिर उनका भी घर वही होगा जहाँ अपने माँ बाप को छोड़कर वो सुकून ले रहे हैं 
माँ बाप की तड़प को समझने के लिए जाना तो उन्हें भी वहीं होगा 

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