मौत से दो शब्द

ऐ मौत, आज खत्म हुआ तेरा इंतज़ार 
और मेरी माँ का भी 
तू खड़ी थी सिरहाने मेरे कि कब रुकें मेरी साँसें 
और तू  बिठाए अपनी गोद में मुझे 
उधर माँ को था इंतज़ार कि बढ़ें मेरी साँसें 
और लौटूँ घर तो गोद में बिठाए मुझे 
आज दोनों का इंतज़ार खत्म 
तेरा घर तो कभी भरा नहीं 
पर मेरी माँ का आँगन आज सूना हो गया 
ज़िंदगी हार गई मेरी माँ  की तरह 
और तू जीत गई सदा की तरह 
अगर है तुझमें हिम्मत तो जा मेरी माँ को दिलासा तो दे आ
कोई नहीं है उसके पास 
नाते रिश्तेदार कहें कि तेरा बेटा कोरोना से है मरा
कम से कम मेरी पत्नी की हाथ की चूड़ियाँ तो तोड़ आ
उसके माथे का सिंदूर  तो मिटा जा 
मेरी माँ में इतनी हिम्मत नहीं है 
और पास कोई रिश्तेदार भी तो नहीं है 
दो शब्द मेरी पत्नी को भी बोल दे 
कि अब वो अपनी गोद भरने की आस न करे  
आज उसका भी इंतज़ार  खत्म 
मेरी माँ और मेरी पत्नी 
दोनों तन्हा दोनों की गोद सूनी
उम्मीदें टूटी हैं दोनों की
ना कोई आसरा ना कोई सहारा 
कैसे करेंगी अब गुज़ारा
पर तुझे क्या  तू तो जीत जाती है हर बार 
तुझे तो होगा और माँओं के बेटों का इंतज़ार, इंतज़ार 
कब खत्म होगा तेरा तांडव  कब रूकेगा तेरा कहर
बस कर अब बस भी कर, दे विराम 
कर दे थोड़ी सी तो मेहर थोड़ी सी मेहर


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