दास्ता-ऐ -ज़िन्दगी
ऐ दोस्त्,क्या तूने ज़िन्दगी को देखा है
मुझे तो लगता है कि यह एक अजूबा है
हसाती है ज़िन्दगी तो रुलती भी है कभी,
आन्सुओ के साथ बह जाती है कभी,
उम्र गुज़र जाती है इस्को समझ्ने में,
मगर अपने पीछे हर दम भगाती है ज़िन्दगी|
जब भी एक खुशी दरवाज़ा खट्खटाती है,
चुप्के से गम को भी बुलाती है ज़िन्दगी,
जिस्को अपना सम्झो वही दगा दे जाता है,
तब औरो से क्या खुद से भी यकीन टूट जाता है|
मैने दुनिया को बदलते देखा है,
खुद को बदलने मे गुज़र जाएगी ज़िन्दगी||
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